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कैसे आईआईएम अव्वल ने किसानों के साथ काम किया 5 करोड़ रुपये का सब्जी व्यवसाय स्थापित

करोडो की नोकरी छोड किसानो की मदत कर रहे है




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नमस्कार दोस्तो,
मुझे इस समय स्वामी विवेकानंद जी की बात याद आ रही है|

किसी मकसद के लिये खडे हो तो, एक पेड की तरह,
गिरो तो एक बीज कि तरह,
ताकि दुबारा उगकर उसी मकसद के लिये फिर खडे हो सको|

जब कोइ एमबीए पास हो जाता है,तो बडे कार्पोरेट मे अच्छी तनख्वा के रास्ते आसान हो जाते है| और जब यह एमबीए दुनियाँ की श्रेश्ठ्तम संस्थान आईआईएम.-अहमदाबाद से स्वर्ण-पदक से हासिल हो तो बात कुछ और ही हो जाति है| बिहार के नालंदा जिले के मोहम्मदपुर गांव के किसान के एक बेटे ने डिग्री हासिल करने के लिए 5 लाख रुपये का शिक्षा ऋण लेते हुए 2007 बैच के एलिट इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) के ग्रेजुएट को टॉप किया, जो फिर कैंपस प्लेसमेंट से दूर रहता है और उन्होंने इस शहर की किसी न किसी सड़कों पर सब्जियां बेचने का विकल्प चुना।



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कौश्लेद्र कूमार ऐसे हि एक व्यक्तित्व का नाम है| बिहार के नालंदा जिले के मोहम्मद्पुर के एक शिक्षक परिवार मे जन्मे और अपने भाई-बहनो मे सबसे छोटे है| बचपन से ही पढ़ाई मे कौश्लेंद्र जी अच्छे थे| इसिलये कक्षा पाँचवीं से आगे के पढाई के लिये उनका दाखिला गाव से लगभग पचास किलोमिटर दुर गया के नवोदय विद्यालय मे हुआ| कौश्लेंद्र जी का झुकाव तो आई.आई.टी. से एंजिनिअर बनने का था| लेकिन नियति शायद उनसे कुछ और ही काम करवाना चाहती थी| इसिलिये उनको आगे के पढ़ाईं के लिये जुनागढ़ के ईंडियन कौन्सेलिंग आफ अ‍ॅग्रिकल्चरल रिसर्च का रुख करना पड़ा| जैसे ही पढ़ाई पूरी हुई, वैसे ही उन्हे एक कंपनी मे रु ६००० के मासिक तनख्वा से नोकरी मीली| पर जैसे के मैंने पहले ही बताया वो ईस नोकरी पर कहा मानने वाले थे| इसीलिये उन्होंने शुरु कर आई आई एम-अहमदाबाद से एमबीए करने का ठान कर स्वर्ण-पदक के साथ पढ़ाई पुरी की|



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आमतौर पर आई.आई.एम. अहमदाबाद से एमबीए स्वर्ण-पदक से पुरा करने के बाद, कोई भी नौजवान को विदेश के चम-चमाते कम्पनी लुभाती है| सालाना करोडो रुपये कि नौकरी आसानी से पा सकते है, पर लाखो मे से एक की सोच रखने वाले कौश्लेंद्र जी ने विदेश का रुख ना करते हुए अपने गाव की और चल दिये/ जहा उन्होने अपने भाई के साथ मिलकर कौशल्या फाऊंडेशन की स्थापना कर वहा के किसान भाई को मदत करने का मन बना लिया| लेकिन जिनके होसलो मे जान होती है|इम्तिहान उन्हि को ज्यादा देना पडता है| इन्हि दिनो पैसो के भारी कमी की वजह से कई दिनो तक पटना मे उन्हे खाली जेब दिन गुजारना पडा| कौश्लेंद्र जी कहते है, यही वो दौर था जब लोग उनपर हसते थे, मजाक उडाते थे पढे लिखे होने बाउजुद बेकार है| लेकिन उन्हे यह विश्वास था की एक दिन सब ठीक हो जायेगा|



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आखिर कार वो समय आ गया जब किसान, विक्रेता और जन भागिदारि के साथ फार्म फ्रेश प्रोड्युस नाम की एक अदभुत श्रुंखला शुरु की| जिस कारण बिहार के किसान भाई को अपना माल सही कीमत पर और बिना किसी मध्यस्थि से सिधे बाजार मे बेचने का मौका मिला है| समृद्धि की कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (एटीएमए) पटना के साथ सार्वजनिक निजी भागीदारी है। लगभग दो साल बाद, उनके सहकारी हर महीने 4-5 लाख रुपये कमाते हैं और 1,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं। किसानों के लिए काम करने के अलावा कौश्लेंद्र जी विशेष प्रयासों से उपभोक्ताओं को खुश रखतेे है। वह 2.5 किलोग्राम सब्जियों की हर खरीद के साथ 1 किलोग्राम आलू मुफ्त देने के अलावा सब्जियों के मुफ्त घर की आपूर्ति करता है इस के पीछे केवल और केवल कौश्लेंद्र जी की मेहनत, लगन और देश के लिय, यहा के किसानो के लिये कुछ कर गुजरने की चाह के कारण ही हुआ है|



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दोस्तो,अगर हम चाहे तो देश के लिये,यहा के लोगो के लिये काम करने सोच लो तो हम कर पायेंगे| आखीर मे मेरा यही कहना है की, जो युवा आई.आई.टी.और आई.आई.एम.जैसे बडे-बडे संस्थान से पढाई करने के बाद उसका उपयोग यहाके लोगो के लिये किया जाय तो ज्यादा फल दायी साबित होगा|



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जय हिंद |

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