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टॉप १० बेहतरिन बॉलीवुड स्पोर्ट्स फिल्मे जो हम सभी को एक बार तो देखना हि चाहिए
टॉप १० बेहतरिन बॉलीवुड स्पोर्ट्स फिल्मे जो हम सभी को एक बार तो देखना हि चाहिए
टॉप १० बेहतरिन बॉलीवुड स्पोर्ट्स फिल्मे जो हम सभी को कम से कम एक बार देखना चाहिए।
खेल इंसान के जिवन का अभिन्न अंग है। जो खेल से प्यार करते वो खेल को हर रुप देखना पसंद करते है। चाहे वो लाइव्ह मॅच हो या फिर सिनेमा हॉल के परदे पर हो।बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर सभी प्रकार के विषयों और शैलियों को छूते हैं। लेकिन खेल फिल्में महाकाव्य का एक और स्तर है। बॉलिवुड ने भी खेल जिवन को अपने परदे पर खुब उतारा है और उनमे से काफि फिल्मे लोगो द्वारा पसंद भी कि गयि है। ये कोइ भी नकार नही सकता कि, खेल जगत पे आधारित फिल्मे बेहद प्रेरणादायक होती है, क्योकि आगामी खेल जगत के स्टार या भूल गए नायक की कहानी होती है।जो कठिनाई के बावजुद अप्नने जिवन मे हार नही मानता है और खेल जगत के उचाई को छुता है। तो चलिए डालते है एक नजर उन बेहतरिन फिल्मो पे जो खेल जिवन पर निर्भित है।
१. चक दे इंडिया (२००७)
शाहरुख खान अभिनीत भारत में सबसे ज्यादा देखे गए और प्रिय खेल फिल्म हैं। एक राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी की कहानी के साथ शुरू होती है, जो एक फिक्सिंग में उलझा दिया गया जाता है। पाकिस्तान से हारने के बाद वह टीम में अपनी जगह खो देता हैं। उसके बाद उसे अपने घरेलु शहर में हि बेदखल माना जाता है और अंततः अपने पैतृक घर से निकलने को मजबुर किया जाता है।
भारतीय महिला हॉकी टीम के सभी बाधाओं के बावजुद विश्व कप जीतने की दिल छूती राष्ट्र प्रेम कि कहानी है जो सबके दिल को पिघलाती है। शाहरुख खान द्वारा शानदार ढंग से चित्रित एक निराश पूर्व हॉकी खिलाड़ी के अॅन्गल भी हैं, जो कि फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराते हुए खुशी के साथ टीम के कोच के रूप में खुद को बचाता है। शाहरुख का सत्तर मिनट का भाषण विशेष रूप से अविस्मरणीय है।
२. लगान (२००१)
भारत में ब्रिटिश शासन की अवधि के दौरान घटी हूई एक अदभुत कहानी है। यह आमिर खान द्वारा अभिनीत फिल्म है। ये कहानी बताती है कि गुजरात में भुज के पास एक छोटासा गांव जो बहुत सूखा पडने के कारण फसलों का उत्पादन करना बेहद कठिन हो जाता है। हालांकि फिर भी ब्रिटिश सरकार केवल उन गांवों से प्राप्त करों के बारे में ही चिंतित रहती है, जिन्हें लगान कहा जाता है।
यह फिल्म इस बात पर आधारित है कि किसानों का एक समूह जो लगान से परेशान होकर सिर्फ दो महीनों में क्रिकेट कैसे खेलना सीखता है। और जिंदगी बनाये रखने के लिए आखिर में तीन दिनों तक चलने वाले क्रिकेट खेल में अंग्रेजों को हराकर अपना कर (लगान) का बोझ को रद्द करने के लिए खेलता है।
२५० मिलियन रुपए के अभूतपूर्व बजट पर बने, लगान सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए अकादमी पुरस्कार के लिए नामांकित होने वाली तीसरी भारतीय फिल्म थी।
३. भाग मिल्खा भाग (२०१३)
भाग मिल्खा भाग, भारत के फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की प्रेरणादायक सच्ची कहानी है, जो ओलिंपिक पदक जीतने युवा की है। इस फिल्म ने न केवल कई खिलाड़ियों को प्रेरित किया बल्कि पूरे भारत में प्रशंसकों के साथ एक भावनात्मक संबंध भी बनाया था। यह आजादी से पूर्व पाकिस्तान में मिल्खा के प्रारंभिक जीवन को चित्रित करता है। यह सबको छोड़ने के लिए मजबूर होने के बाद उसने किया हुआ संघर्ष दिखाता है। और दिल्ली में आकर शरणार्थी के रूप में विभाजन के रक्तपात में जिसने अपने माता-पिता को भी खो दिया है। यह फिल्म पुरानी दिल्ली में मिल्खा के प्रारंभिक वर्ष को याद करती है। और जब वह राष्ट्रीय सुर्खियों में भारत की सबसे सफल एथलीट के रूप में उभरने से पहले सेना में शामिल हो जाता है।
फरहान अख्तर एथलीट के रूप में प्रमुख भूमिका को पूर्ण न्याय दिया है। एक प्रेरक पृष्ठभूमि स्कोर के साथ मिलकर, यह फिल्म आपको अपने सोफे से बाहर निकलने और अपने फिटनेस पर काम करने के लिए प्रेरित करेगी।
४. पान सिंग तोमर (२०१२)
एक और सच्ची कहानी, इस बार भारतीय सेना में एक सोलिडर के बारे में जो राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। लेकिन हालात ने उसे डकैत बनने के लिए मजबूर कर दिया था। इरफान खान ने पान सिंह तोमर के भुमिका को बखुबी निभाया है। फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता और इरफान खान ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का जीता था।
५ जो जीता वही सिकंदर (१९९२)
ये कहानी एक अमीर युवा और एक ही लड़की के लिए लड़ने वाला एक गरीब लड़के की है। यह सभी अपने कॉलेज में सबसे प्रतिष्ठित खेल प्रतियोगिता मे जित को लेकर है। जिसमे मुख्य भूमिका में आमिर खान अपने भाई के साथ हुए अत्याचार का बदला मैराथॉन को जित के साथ लेता है। इस फिल्म ने बंगाली, तेलुगु और तमिल में रीमेक को प्रेरित किया है।
६. इकबाल (२००५)
हर भारतीय बच्चे को भारत के लिए क्रिकेट खेलने का सपना है और यही वह फिल्म है जो इस फिल्म के बारे में है। यह एक बहरे और मूक किसान के बेटे की कहानी है जो एक शराबी और पूर्व खिलाड़ी के मार्गदर्शन में भारतीय टीम मे अपनी जगह बनाने में सफल होता है। नसीरुद्दीन शाह और श्रेयस तलपदे ने अपने किरदार बहुत अच्छी तरह निभाया है।
७. एम. एस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी (२०१६)
भारत के सबसे सफल क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के जीवनी पर आधारित एक बेहतरिन फिल्म थी। एम एस धोनी: द अनटॉल्ड स्टोरी एक २०१६ की भारतीय जीवनी खेल फिल्म है जो नीरज पांडे द्वारा लिखित और निर्देशित है। यह पूर्व टेस्ट, एकदिवसीय और टी-२० भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के जीवन पर आधारित है। फिल्म मे सुशांत सिंह राजपूत को धोनी के रूप में, दिशानि पटानी, कीरा आडवाणी और अनुपम खेर कि भी प्रमुख भुमिका है। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर १०० करोड़ रुपये से अधिक कमाई। फिल्म ने इतनी कमाई सिर्फ भारत में की है। फिल्म को मिल रही प्रशंसा के बाद इसे उत्तर प्रदेश में टैक्स फ्री कर दिया गया है।
८. सुलतान (२०१६)
सुल्तान अली खान (सलमान खान) एक माध्यम आयु का पूर्व-पहलवान था, जो हरियाणा के एक छोटे से शहर में रहता था। आकाश ओबेरॉय (अमित साध) एक "प्रो टेक-डाउन" लीग का मालिक रहता है। वह इसे बहुत प्रसिद्ध करने के लिए एक भारतीय पहलवान को रखना चाहता है। इसके लिए वह सुल्तान से बात करता है, लेकिन सुल्तान साफ साफ मना कर देता है। आकाश अब उसके पहलवानी छोड़ने का कारण जानने के लिए उसके दोस्त गोविन्द (अनंत शर्मा) से बात करता है।
इसके बाद गोविन्द उसे आठ साल पहले की कहानी बताता है, जब सुल्तान को आरफा (अनुष्का शर्मा) से प्यार हो जाता है। लेकिन आरफा उसे मना कर देती है। सुल्तान इसके बाद कई महीने तक बहुत मेहनत करता है और पहलवानी के एक मुक़ाबले में हिस्सा लेता है। इस मुक़ाबले के जीतने के बाद जल्द ही आरफा और उसकी शादी हो जाती है और वो राष्ट्रीय स्तर का पहलवान बन जाता है।
कुछ समय बाद आरफा माँ बनने वाली होती है और पहलवानी छोड़ देती है। जिस दिन उसका बच्चा होने वाला होता है, उसी दिन वह एक और मुक़ाबले में जाता है और जब वापस आता है तो उसे पता चलता है कि उसका बच्चा खून की कमी के कारण मर गया है। उसका खून ओ+ होता है, जो सुल्तान का भी होता है। लेकिन उसके नहीं रहने के कारण कोई और खून देने वाला भी नहीं मिलता है। इस कारण आरफा उसे ही उस बच्चे के मरने का कारण सोचती है। इसके बाद सुल्तान अकेला वहाँ रक्त-बैंक बनाने के लिए पैसे जमा करने लगता है।
इस बात का पता चलते ही आकाश सुल्तान को बोलता है कि यदि वह लीग में हिस्सा ले लेता है तो उसे उसका सपना पूरा करने के लिए पूरे पैसे मिल जाएँगे। सुल्तान मान जाता है और उसके साथ दिल्ली चले जाता है। लेकिन तब तक उसका शरीर बेढंगा और मोटा रहता है। इस कारण वह उसे फतेह सिंह (रणदीप हुड्डा) के पास छोड़ देता है, जहाँ वह कुछ सप्ताह के लिए अभ्यास करता है। पूरी तरह सेहतमंद होने के बाद पहले ही मुक़ाबले में सुल्तान जीत जाता है। लेकिन सेमी-फाइनल में उसे बहुत बुरी तरह चोट लग जाती है और वह अस्पताल में भर्ती हो जाता है। डॉक्टर आकाश को कहते हैं कि जब तक वह पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता, उसे लड़ाई नहीं करनी चाहिए। इसके बाद आरफा अस्पताल आ जाती है और उसे इस काम को पूरा करने के लिए बोलती है। सुल्तान दर्द के बाद भी इस प्रतियोगिता को जीत जाता है और सुल्तान और आरफा फिर से एक हो जाते हैं। इसके बाद सुल्तान अपने इनाम के पैसों से एक ब्लड-बैंक बनाता है। इसके कुछ वर्षों के बाद आरफा एक बच्ची को जन्म देती है।
यह आमिर के दंगल से पहले आई २०१६ की सबसे बड़ी कमाई वाली फिल्म थी।
९. मॅरी कॉम (२०१४)
मैरी कॉम एक भारतीय हिन्दी बॉलीवुड फ़िल्म है जो २०१४ में सिनेमा घरों में प्रदर्शित हुई थी। जिसका निर्देशन ओमंग कुमार ने किया था। यह एक जीवनी फ़िल्म है जो मुक्केबाज मैरी कॉम पर आधारित है जिसमें प्रियंका चोपड़ा ने किया था।
वह ओलंपिक कांस्य पदक जीतने वाली भारत की एकमात्र महिला मुक्केबाज है। इस फिल्म में महिलाओं की सशक्तिकरण के विषय का उल्लेख किया गया है। कि प्रियंका चोपड़ा की भूमिका मैरी कॉम ने किस तरह ओलंपिक मंच पर पहुंचा दिया है। जहां महिलाओं को अपने सपनों का पीछा करने के लिए स्वतंत्रता नहीं दी जाती है।
१०. दंगल (२०१६)
महावीर सिंह फोगाट पहले एक पहलवान रहता है, लेकिन अच्छी नौकरी के लिए कुश्ती छोड़ दिया रहता है। इस कारण भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने का उसका सपना भी अधूरा रह जाता है। इसके बाद वह सोचता है कि उसका अधूरा सपना उसका बेटा पूरा करेगा। लेकिन उसके घर लगातार चार बेटियों के होने से वह निराश हो जाता है। क्योंकि उसे लगता है कि लड़कियों को कुश्ती नहीं बल्कि घर के कार्यों को सीखना चाहिए। लेकिन जब उसकी बड़ी बेटियाँ,गीता फोगाट और बबीता फोगाट मिल कर उन पर अपमानजनक टिप्पणी करने वाले लड़कों को पीट कर आ जाते हैं तो उसे उनमें भविष्य का पहलवान दिखाई देता है।
महावीर उन दोनों को कुश्ती सिखाने लगता है। उसके द्वारा कठोर तरीकों से सीखना, बाल छोटे-छोटे कटवाना, सुबह सुबह कसरत करना आदि से शुरू में उन लड़कियों को अपने पिता के ऊपर बहुत क्रोध आते रहता है, पर जल्द ही उन्हें यह एहसास हो जाता है कि उनके पिता उन्हें केवल गृहणियों के रूप में जीवन बिताने के लिए नहीं बल्कि देश के लिए कुछ कर दिखाने के लिए यह सब कर रहे हैं। इसके बाद वो दोनों खुशी से महावीर से कुश्ती के दांव-पेंच सीखते हैं। महावीर उनको प्रतियोगिता में भी ले जाता है, जिसमें गीता और बबीता मिल कर कई लड़कों को हरा देते हैं। प्रतियोगिताओं को जीतते हुए गीता को पटियाला में प्रशिक्षण लेने का मौका मिलता है। जिसके बाद वह कॉमनवैल्थ खेलों में हिस्सा ले सकेगी।
गीता उस संस्थान में जाने के बाद अपने दोस्तों के साथ मिल कर अनुशासन की उपेक्षा करने लगती है। वह हर समय टीवी देखती, सड़क पर मिलने वाले खाने खाती और लंबे बाल रखती थी। उस संस्थान के शिक्षक का तकनीक उसके पिता के तकनीक से थोड़ा अलग था, और गीता को लगता था कि उसके शिक्षक का तकनीक उसके पिता के तकनीक से बहुत अच्छा है जबकि उसके पिता की तकनीक पुरानी हो चुकी है। वह घर लौट आती है तो वह उसके पिता के सिखाये तकनीक के स्थान पर संस्थान में सिखाये तकनीक से मुक्केबाज़ी करती है। इसके बाद महावीर और गीता में मुक्केबाजी होती है और अपने बढ़ती उम्र के कारण महावीर उससे हार जाता है। बबीता अपने बहन गीता से कहती है कि वह अभी जिस स्थान पर है, वह उसके पिता के तकनीक के कारण है और उसे अपने पिता के तकनीक को नहीं भूलना चाहिए।
गीता की तरह बबीता भी उस संस्थान में चले जाती है। गीता लगातार हर मैच हारते रहती है, क्योंकि वह अपने पिता द्वारा सिखाये गए तकनीक या कुश्ती में पूरी तरह ध्यान नहीं देते रहती है। उसने अपने नाखून बढ़ा लिए रहते हैं और रंग भी लगा रखा होता है साथ में अपने बालों को भी काफी लंबा रखें होने कारण भी उसे हार का सामना करना पड़ते रहता है। उसे अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वह इस बात को महावीर को बताती है। महावीर उसके संस्थान में आ कर उन दोनों को प्रशिक्षण देने लगता है। लेकिन उस संस्थान में प्रशिक्षण सिखाने वाले को जब इस बात का पता चलता है तो वह उन दोनों को बाहर निकालने हेतु शिकायत कर देता है। उसके बाद यह निर्णय हुआ कि उन दोनों को संस्थान में तभी रखा जा सकता है जब महावीर संस्थान में न आए और उन दोनों को कहीं कोई प्रशिक्षण न दे। इसके बाद महावीर गीता के पुराने वीडियो को देखता है जिसमें वह हार जाये रहती है और फोन के द्वारा गीता को उसके गलती के बारे में बताता है।
कॉमनवैल्थ खेलों में गीता हिस्सा ले लेती है और महावीर उसके कोच के निर्देशों के विपरीत दर्शकों के साथ बैठ जाता है। गीता अपने कोच के सिखाए तरीकों से न लड़ कर अपने पिता के सिखाये तरीकों से लड़ती है और हर बार जीत जाती है। उस कोच को महावीर से जलन होने लगती है और इस कारण वह महावीर को एक कमरे में बंद कर देता है। महावीर के अनुपस्थिति में भी गीता स्वर्ण पदक जीत जाती है और भारत की पहली महिला पहलवान बन जाती है, जिसने स्वर्ण पदक जीता।
सही समय पर महावीर वहाँ से निकल आता है और समाचार मीडिया के सामने वह कोच अपना श्रेय नहीं ले पाता है। इसके बाद फिल्म के अंत होने से थोड़ा पहले दिखाया जाता है कि बबीता भी कॉमनवैल्थ खेल २०१४ में स्वर्ण पदक जीत जाती है और गीता पहली महिला मुक्केबाज बनती है जो ओलिंपिक्स में हिस्सा लेती है। नितेश तिवारी द्वारा निर्देशित, दंगल ३०० करोड़ रुपये के पार करने वाली दूसरी फिल्म बन गई है।
तो ये रही कुछ बेहतरिन खेल पर आधारित फिल्मे जो हम को हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।
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टॉप १० बेहतरिन बॉलीवुड स्पोर्ट्स फिल्मे जो हम सभी को एक बार तो देखना हि चाहिए
Reviewed by Inspiring India
on
October 29, 2017
Rating: 5
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